अंबिकापुर। युवावस्था में कदम रखने के बाद माता-पिता बेटियों के हाथ पीले करने के लिए मशक्कत करने लगते हैं, लेकिन जिंदगी की आपाधापी के बीच आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं, जिसमें लाखों, करोड़ों रुपये फूंकने और शान-शौकत से विवाह संपन्न कराने के बाद भी कई बेटियां ससुराल में सुख-चैन की जगह संताप और उलाहना झेलते नजर आती हैं । ऐसे मे कई युवतियां खुद को बोझ समझने लगती हैं।
ऐसी कई युवतियों की जिंदगी को संवारने का काम दर्रीपारा अंबिकापुर निवासी एमएसएसव्हीपी की डायरेक्टर और शक्ति सदन की संचालिका डॉ. मीरा शुक्ला ने किया है। इनका आए दिन ऐसी युवतियों व महिलाओं से सामना होता है, जो जिंदगी से हताश और निराश होकर किसी न किसी माध्यम से इनके पास पहुंचती हैं। काउंसलिंग के बीच नवयुवतियां जिन्हें ‘मीरा मैडम संबोधित करती हैं, ममता की छांव और अपनत्व भरा साथ मिलने के बाद सुखद जीवन की राह नजर आते ही वे इन्हें खुद-ब-खुद ‘मीरा मांÓ संबोधित करने लगती हैं। जी हां…हम बात कर रहे हैं, उस डॉ. मीरा शुक्ला की, जिन्होंने अपनी एक बेटी का कन्यादान करने के बाद अब तक 29 अन्य बेटियों के हाथ पीले किए हैं। सभी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। बड़ी बात यह है कि विवाह के बाद दांपत्य जीवन में रची-बसी ये बेटियां अपनी बड़ी-छोटी खुशियां इनसे साझा करती हैं, इसके पीछे कारण एक मां की जिम्मेदारी पूरी करते कन्यादान करना है। धर्म, जाति के बंधन से दूर रीति-रिवाज से हुए सभी विवाह का साक्षी सरगुजा का यह शक्ति सदन रहा है, जहां कई युवतियां दुखियारी बनकर आईं और उन्हें नई मंजिल मिली है। विवाह भी सामान्य नहीं, बल्कि मंडप, हल्दी की पूरी रस्म अदायगी के साथ यहां से बेटियों की विदाई हो रही हंै, यह सिलसिला थमा नहीं है।
दीपक के घर की रौशनी बनकर बस गई
ऐसा ही एक और विवाह डॉ. मीरा शुक्ला ने 8 मई 2025, गुरूवार को झारखंड के लातेहार की सुस्मिता का अंबिकापुर के दीपक से संपन्न कराया, जो अपने पसंद के युवक के साथ विवाह करना चाहती थी, लेकिन घर वाले इसके लिए तैयार नहीं थे। युवती तय कर चुकी थी कि वह शादी मनपसंद लड़के के साथ करेगी। सुस्मिता दो वर्ष पूर्व काम करने के उद्देश्य से अंबिकापुर आई थी, लेकिन काम नहीं मिला और वह अपने दीदी के पास लगभग एक माह रही। मार्च 2023 में दीपक से उसकी पहचान हुई, जो दुकानों में कोल्ड ड्रिंक सहित अन्य सामानों की सप्लाई करता था। इसके बाद दोनों ने अपने मोबाइल नंबर का आदान-प्रदान किया और उनके बीच बातचीत होने लगी। इसके बाद उन्होंने दांपत्य जीवन में बंधकर साथ रहने का निर्णय ले लिया। सुस्मिता महिला थाने गई, उसकी बात को सुनने के बाद उसे शक्ति सदन भेज दिया गया, ताकि वह सुरक्षित रहे।
महिला थाना के अनुशंसा पर पहुंची थी शक्ति सदन
महिला थाना के अनुशंसा पर सुस्मिता 24 अप्रैल 2025 को शक्ति सदन में पहुंची थी। वह जिस दीपक की रोशनी बनकर उसके घर में रहना चाहती थी, उसके परिवार के सदस्य बिना विवाह किए उसे साथ रखने के लिए तैयार नहीं थे। यहां रहने के दौरान उसे पता चला कि यहां की संचालिका डॉ. मीरा शुक्ला ने कई लोगों को विवाह के बंधन में बांधा है। इसके बाद सुस्मिता ने संकोच के बंधन को तोड़ दिया और डॉ. मीरा शुक्ला को मां संबोधित करके मन की बात कह दी। डॉ. मीरा शुक्ला ने 25 अप्रैल से 5 मई के बीच कई बार सुस्मिता की मां को फोन लगाया, लेकिन बात नहीं हुई। इसके बाद वे पटना बिहार में रहने वाली सुस्मिता की बड़ी बहन से बात करके पूरी बात से अवगत कराई और बताया कि 8 मई को सुस्मिता की शादी दीपक से हो रही है, उन्हें शादी में आकर आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया। बहन ने कहा सुस्मिता बालिग है, उसे जो करना है करे, और वह फोन रख दी। सुस्मिता निराश हुई, लेकिन उसने डॉ. मीरा शुक्ला को कहा कि मां अब आप ही सहारा हैं। इसके बाद उन्होंने दीपक के परिवार की सहमति से शहर के सामुदायिक भवन में दोनों का विवाह विधिवत संपन्न कराया।
मैं मीरा मां की ही बेटी हूं
विवाह की तैयारियां शुरू होने और सात फेरे लेने के बाद सुस्मिता ने कहा कि ‘मैं मीरा मां की ही बेटी हूंÓ यही मेरी मां और पिता हैं। कहते हुए उसके आंखों में आंसू के साथ जीवन जीने की नई चाह नजर आने लगी। शक्ति सदन और डॉ. मीरा शुक्ला के निवास में संपन्न हुए मंडप और हल्दी की रस्म के बीच कई बार उसके आंखों से छलक जा रहे थे। विवाह की तिथि 8 मई की शाम को अचानक मौसम ने करवट लिया, लेकिन वर पक्ष ने भी हंसी-खुशी के साथ नई बहू को घर लाने के पहले विधिवत विवाह की रस्म अदायगी में अपनी सहभागिता निभाई। इसके साथ ही डॉ. मीरा शुक्ला ने 30वीं बेटी का कन्यादान किया। विवाह के सात फेरे लेने के बाद सुस्मिता ने कहा अपनों का भले साथ नहीं मिला लेकिन मीरा मां उसकी जिंदगी बर्बाद होने से बचा ली।
