भटगांव। सूरजपुर जिला नीलगिरी के पेड़ों की अवैध कटाई और तस्करी का संगठित अड्डा बनता जा रहा है। निजी भूमि पर लगेे नीलगिरी के पेड़ों की कटाई के लिए कानून के तहत उप जिला अधिकारी एसडीएम की अनुमति अनिवार्य है। कटाई के बाद लकड़ी परिवहन हेतु वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना जरूरी है। ज़मीनी हकीकत यह है कि नियमों की किताब धूल खा रही है और तस्कर बेखौफ हरित संपदा पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं। नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लकड़ी ट्रकों में लादकर बेधड़क प्रदेश की सीमाएं पार कर रही है और प्रशासन तमाशबीन बना बैठा है। लकड़ियों के परिवहन के लिए बकायदा प्रमाणपत्र नगर पंचायत अध्यक्ष के द्वारा दिया जा रहा है।
स्थानीय सूत्रों की मानें तो इस अवैध धंधे की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि अब यह जिला उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के लकड़ी तस्करों के लिए सुरक्षित अड्डा बन गया है। ठेकेदारों द्वारा बाहरी मजदूरों को बुलाकर रात-दिन कटाई करवाई जा रही है। हैरानी की बात यह है कि न तो पुलिस ने कभी इन मजदूरों का वेरिफिकेशन कराया, न ही राजस्व या वन विभाग ने इस गतिविधि पर रोक लगाने की कोशिश की। इस पूरे अवैध खेल में सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन क्यों मौन है? खुलेआम चल रहे तस्करी पर कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस धंधे के पीछे राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिलीभगत की स्याह परछाई मौजूद है। नगर पंचायत अध्यक्ष भटगांव और भटगांव नगर पंचायत के कई पार्षद तक अपने अधिकारों का सरेआम दुरुपयोग कर रहे हैं। सादे कागज़ों पर अनुमति-पत्र तैयार कर ठेकेदारों के हवाले किया जा रहा है। यह न सिर्फ नियमों का मखौल है, बल्कि पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी भी है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर राज्य सरकार तक पेड़ों की कटाई पर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है, सवाल यह उठता है कि क्या यह आदेश सूरजपुर की सीमाओं के लिए नहीं है, या फिर यह जिला कुछ खास रसूखदारों के लिए कानून-शून्य बन चुका है? स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों ने प्रशासनिक निष्क्रियता पर तीखे सवाल खड़े करते हुए अविलंब कार्रवाई की मांग की है। इनका कहना है कि यदि इसी तरह से जिले की हरी संपदा पर कुल्हाड़ी चलती रही, तो आने वाले समय में सूरजपुर का पर्यावरणीय संतुलन पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा।
पेड़ आपके, पर कानून सरकार का
निजी जमीन पर लगे नीलगिरी के पेड़ बिना अनुमति काटना महंगा साबित हो सकता है। कानून का शिकंजा हर जगह बराबर लागू है। जब तक प्रशासन इस तस्करी पर लगाम नहीं कसता, तब तक तस्करों की मनमानी पर विराम नहीं लगेगा।
