शराब पीने के बाद अपनों के ही खून के प्यासे हो रहे
गिरिजा कुमार ठाकुर
छ.ग.फ्रंटलाइन अंबिकापुर। कौन कहता है गांव में लोग जागरूक नहीं हैं…इन्हें अच्छे-बुरे की परख नहीं है। घर-परिवार की बर्बादी की जड़ को समाप्त करने की इनमें आतुरता नहीं है। बदलते दौर के बीच शहरी युवाओं में शराब का प्रचलन जहां एक ओर उफान मार रहा है्र, वहीं शहर के करीबी गांवों में बनने वाले महुआ शराब की सुगंध गांव से अधिक शहर में पहुंच रही है, इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी समाज के बीच किसी भी सामाजिक आयोजन के बीच हड़िया और महुआ शराब की उपलब्धता देखने को मिलती है। इन सबके बीच आदिवासी समाज के लोग ही अगर नशामुक्त ग्राम की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में पहल करने लगें तो थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन सरगुजा जिले के ग्राम पंचायत चिपरकाया, गोविन्दपुर, भटको, चिरगा व करदना के ग्रामीणों ने कुछ ऐसा ही कदम उठाया है। अच्छी बात यह है कि इन पंचायतों के ग्राम प्रधान भी इस सामाजिक बुराई के पक्षधर नहीं हैं। इनका कहना है कि सामाजिक आयोजनों में वे शराब नहीं चाय पिलाएंगे, रोटी-पूड़ी, चावल-दाल खिलाएंगे।
सरगुजा जिले के बतौली विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत चिपरकाया के पूर्व सरपंच फूलसाय मिंज, कोरवा समाज सहित गांव के अन्य लोगों के साथ मिलकर गांव में पूर्ण शराबबंदी की पहल पर उतारू हैं। लगातार दो बार से इनकी पत्नी मेझरेन मिंज इस गांव की सरपंच निर्वाचित हो रही हैं। इनके द्वारा शराब बंदी के लिए की गई पहल कई लोगों के लिए गले की हड्डी भी बन गई है और शराब को जीविका का आधार मानकर चलने वालों की नजर में ये खटक भी रहे होंगे। यह जानते हुए भी गांव, घर, परिवार और समाज की खुशहाली के लिए इन्होंने यह बीड़ा उठाया है। इनका कहना है कि शराब पीने के बाद कोई हत्या जैसा घातक कदम उठाते आ रहा है, तो कोई खुदकुशी की राह पर अग्रसर हो रहा है। नशे की पूर्ति के लिए उठाए जाने वाले कदम के परिणाम की परवाह किए बगैर ग्रामीण क्षेत्रों में जिस प्रकार का परिदृश्य सामने आ रहा है, ऐसे हालात न बनें, इसे देखते हुए वे गांव में शराब बनाने, बेचने और पीने पर पाबंदी लगाने जैसा कदम उठाने पर आमादा हुए हैं। इसके लिए पहाड़ी कोरवा समाज कल्याण समिति का इन्होंने बकायदा गठन किया है और 22 सितम्बर 2024 से निरंतर सामाजिक बैठक करके गांव के शराब नहीं बनाने, पीने पर जोर दे रहे हैं। इन्होंने जिला और पुलिस प्रशासन से भी इस मुहिम में सहयोग की अपेक्षा व्यक्त की है और उनके संज्ञान में इन बातों को लाया है।
मां का सिर से साया हटा, पिता जेल में, अनाथ हुए बच्चे
फूलसाय मिंज और कोरवा समाज के अध्यक्ष नइहर साय का कहना है कि शराब के चक्कर में पिछले 4-5 वर्षों में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई है। कोई पत्नी की हत्या करके जेल में है, तो कोई फांसी लगाकर, तालाब में कूदकर जान दे रहा है। ऐसे में पहाड़ी कोरवा विशेष का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। शराब पीने के बाद आए दिन झगड़ा-झंझट, मारपीट की नौबत बनती है, इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। पति-पत्नी शराब पीने के बाद खून के प्यासे हो रहे हैं। किसी न किसी को हत्या के मामले में जेल जाना पड़ रहा है और बच्चे अनाथ जीवन जी रहे हैं। माता-पिता का साया सिर से हटने के बाद बच्चे किन हालातों में समय गुजार रहे होंगे, इसकी कल्पना से मन सिहर उठता है।
शराब बनाते मिले तो 10 हजार रुपये जुर्माना
शराबबंदी का बीड़ा उठाए ग्रामीण बताते हैं कि उनके द्वारा उल्लेखित गांव में शराब बनाते पाए जाने पर 10 हजार रुपये जुर्माना के साथ ही कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया है। गांव में कोई शराब पीकर घूमते मिला तो उस पर भी अंकुश लगाया जाएगा। उनके इस अभियान को शुरू हुए अभी एक माह भी नहीं हुआ है, लेकिन हर रविवार को वे किसी न किसी गांव में बैठक आहूत करके गांव के लोगों की मौजूदगी में उन्हें नशे की बुराई को त्यागने का संदेश देते आ रहे हैं। इनका दावा है कि उनकी इस पहल से पांचों गांवों में 30 प्रतिशत लोगों ने शराब को त्यागा है। इनसे आग्रह किया गया है कि किसी प्रकार की सामाजिक रस्म अदायगी में भी इस बुराई को शामिल नहीं करें।
रोजाना होती घटनाओं ने झिंझोड़ दिया
पुलिस अधीक्षक सरगुजा से मुलाकात करने अंबिकापुर पहुंचे ग्रामीणों ने कहा कि आए दिन पति-पत्नी के बीच शराब पीने के बाद होने वाले झगड़े और इसकी परिणति ने उन्हें झिंझोड़ दिया है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि चिपरकाया में ग्रामीण रामसाय ने अपनी पत्नी की हत्या शराब के नशे में कर दी। इनके चार बच्चे हैं, मां की मौत हो गई, पिता जेल में है। ग्राम भटको के राजनाथ ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी। इनके भी तीन बच्चे हैं, मां स्वर्ग सिधार गई पिता जेल में है। करदना की एक महिला शराब पीने के बाद तालाब में कूद गई, जिसमें उसकी मौत हो गई। महिला के तीन बच्चे हैं, जिनके सिर से मां का साया हट गया है। ऐसे में बच्चों की मनोस्थिति आने वाले समय में कैसी होगी, यह अकल्पनीय है।

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