राजेन्द्र ठाकुर (राजू)बलरामपुर बलरामपुर जिले में दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े ही धूमधाम और श्रद्धाभाव से मनाया गया। नौ दिनों तक भक्तों ने माता रानी की सेवा और पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया। जगह-जगह भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने अपनी भक्ति की मिसाल पेश की।
ग्राम पंचायत बड़की महरी के अटल चौक में इस बार पहली बार दुर्गा माता की प्रतिमा की स्थापना की गई, जिसे लेकर ग्रामीणों में विशेष उत्साह देखा गया। नौ दिनों तक पूजार्चना और भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों भक्तों ने हिस्सा लिया। दसवें दिन माता का विसर्जन गांव के तालाब में धूमधाम से किया गया।
विसर्जन के दौरान गांव के सभी चौक-चौराहों से होकर गुजरते हुए बुजुर्ग, युवा, महिलाएं और बच्चे देवी के विदाई गीतों पर झूमते हुए माता की विदाई में शामिल हुए।
समिति के सदस्य मुकेश कुमार गुप्ता, आर. एच. ओ बड़की महरी, मुख्य पुजारी विजय सिंह, अरविंद सिंह, अरुण, अमरेश, सोबरन सिंह सहित कई भक्तों ने पूरे दस दिन माता की सेवा की और अंतिम दिन भावुक होकर माता की विदाई की।

गांव की अनोखी दर्द भरी कहानी

भगतों ने बताया की हमारे गांव का पावन स्थल, अटल चौक, जिसे हम सभी अपने दिल से जोड़ते हैं, न जाने कितनी पीढ़ियों से हमारी उम्मीदों और आस्थाओं का केंद्र रहा है। यहीं पर गांव के बुजुर्ग बैठते, अपनी सोच और निर्णय से गांव की दिशा तय करते थे। इस चौक का हर कोना, हर पेड़ पौधा हमारे गांव की खुशियों और दुखों का साक्षी है। लेकिन इस बार, एक अनकहा दर्द जो लंबे समय से हमारे गांव के दिलों में दबी थी, बाहर आया।
कुछ दिनों पहले की बात है, जब गांव के प्रमुख लोग इसी चौक पर बैठे थे। और चर्चा का विषय बड़ा गंभीर था – नवरात्रि, देवी मां का पवित्र पर्व, जो आस-पास के सभी गांवों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। लेकिन हमारे गांव में, जहां हर परिवार देवी की पूजा अपने घरों में करते थे लेकिन, वहां सार्वजनिक रूप से गांव के हृदय स्थल पर कभी भी मां दुर्गा का आगमन नहीं हुआ था। छोटे-छोटे बच्चे, बुजुर्ग, यहां तक कि माता-पिता भी देवी के दर्शन के लिए दूसरे गांवों में जाते थे। यह दर्द किसी से छिपा नहीं था, लेकिन यह एक अनकही पीड़ा बन चुकी थी, जिसे हर कोई महसूस करता था, पर कह नहीं पाता था।
अक्सर, गांव की नन्हीं बेटियां पूछतीं, थी पापा “हमारे गांव में मां क्यों नहीं आतीं?” और यह सवाल सुनकर हमारे और गांव के बुजुर्गों के दिल टूट जाते थे। हर बार दूसरे गांवों की ओर रुख करते समय, मानो एक ऐसा खालीपन हमारे लोगों के दिलों में खाली घर बन गया था, जो किसी से भर नहीं पाया था।
लेकिन इस बार, कुछ अलग हुआ। गांव के प्रमुख लोग, बुजुर्ग, युवाओं, और महिलाओं के दिलों में एक नया जोश जगा। सबने एकजुट होकर निर्णय लिया कि इस बार नवरात्रि पर मां दुर्गा हमारे गांव के अटल चौक पर विराजमान होंगी। यह खबर जैसे ही गांव में फैली, हर किसी के चेहरे पर एक नई उम्मीद जागी।
इस बार, गांव के हर व्यक्ति ने अपनी पूरी ताकत और श्रद्धा से मां का स्वागत किया।
और माता की मूर्ति को अटल चौक पर स्थापित किया
अंततः, अटल चौक पर मां दुर्गा विराजमान हुईं। भले ही उस दर्द ने हर किसी के दिल को दहला दिया था, लेकिन उसकी वजह से गांव के लोगों की एकजुटता और विश्वास और मजबूत हो गए। भंडारे का आयोजन किया गया, और हर किसी ने प्रसाद ग्रहण करते हुए यह महसूस किया कि इस संघर्ष और पीड़ा के बाद मिला आशीर्वाद अब और भी खास है।
अटल चौक पर मां दुर्गा का यह पहला आगमन था, लेकिन वह दिन गांव की यादों में हमेशा के लिए अंकित हो गया – एक दिन जिसने गांव को दर्द और संघर्ष से गुजरते हुए आस्था और विश्वास का नया स्वरूप दिखाया। और माता ने आशिर्वाद दिया है

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